सवाल है कि क्या भारत चीन को पीछे छोड़ देगा तो देखिए यह तरस मैं कहूं तो नामुमकिन जैसा है चीन का रवैया है या उसकी नीति है वह भारत से कहीं भी मैच नहीं काटी आना भारत उससे कहीं भी मेल खाता है उसकी एग्रेसिव नीति और कठोर ना जी की तरह जिस प्रकार से उनकी नीतियां होती है उनकी नियम होते हैं और वह कहां जाए तो एक धर्म के दृष्टिकोण से चलते अपना एक प्रोपेगेंडा उनका है वहां भी विजेता नहीं है वहां एक नियम है एक देश है एक धर्म को वहां अहमियत दी जाती है और वहां सिर्फ चाइना फर्स्ट ही रहता है और वही भारत में बात करें तो यहां कोई भी आकर कुछ भी कर सकता है यहां विविध तरह के लोग हैं भाषा के है धर्म के लोग हैं सब के अलग-अलग सोच है यहां अनेकों पार्टियां है उनकी अलग-अलग विचार धाराएं हैं और यहां के लोग भी चाइना के मुकाबले बहुत ज्यादा आलसी होते हैं तो बहुत ऐसी फैक्टर्स है जिनके मुकाबले में जाने से बहुत पीछे हैं और उसे रिकवर करना एकदम से नामुमकिन सा है तो हम यह नहीं कहते कि उसे पीछा नहीं छोड़ सकते लेकिन जो हमारे मनोज दृष्टि है जो हमारे मानसिक जो एक बन चुका है समझना वह कहीं ना कहीं चाइना से बहुत पीछे है तो सबसे पहले तो हमारे जो मानसिक संतुलन है जो हमारी मानसिकता है उसमें बदलाव और बड़े पैमाने पर बदलाव बहुत जरूरी है अपने कि हम इटली क्या बोलते हैं उसको सऊदी जैसा एक और मतलब वहां जैसे सुरक्षा यहां पर चाहते हैं अगर वहां जैसा अगर थोड़ा भी अगर यहां कानून को इंप्लीमेंट किया जाता है हार्ड कर लिया जाता तो क्या होता है लोगों को तराश होने लगता है जैसे की गाड़ी के चालान के समय में देखा गया जब गाड़ी जो परिवहन पर जब इतने ठीक तरीके से रूस लाए गए तो लोगों को बहुत ज्यादा दिक्कत होने लगी और यही लोग जो कहते थे कि सऊदी अरेबिया से में कुछ सीखना चाहिए वही लोग चिल्लाने लगे कि यह सही नहीं है यह लोगों को परेशान करने का एक तरीका सरकार द्वारा तो कहीं ना कहीं हमारी जो मनु दृष्टि है ना बहुत ही कमजोर है और हम पहले की अपेक्षा बहुत ज्यादा ऑल से भी हैं तो सबसे पहले तो हमको खुद को बदलना होगा फिर यह सवाल आएगा कि क्या भारत हैं चीन को पीछे छोड़ पाएगा
सवाल है कि हमारे देश में अंग्रेजों के खिलाफ जंग किसने छड़ी लेकर इस का बेवरा जब प्राण तन मिलता है वह 18 से 97 की क्रांति की मिलती है जिसमें झांसी की रानी तात्या टोपे विभिन्न जगहों से उन्होंने जो विद्रोह करा लोगों ने जो जंग छिड़ी अंग्रेजो के खिलाफ उसका विवरण मिलता है हमें मंगल पांडे के फांसी से जब उन्होंने सूअर की चर्बी से बने हुए बम को अपने मुंह से एक निकालकर फेंकने से मना किया और फिर उसके उन्होंने विद्रोह कर दिया और फिर उन्हें फांसी की सजा मिली उन्हें फांसी पर चढ़ा दिया गया तो फिर तब जाकर जनमानस में अंग्रेजो के खिलाफ कहीं ना कहीं विद्रोह पैदा हुआ फिर वहां से कारवां बहुत तेजी से बड़ा तो हम कह सकते हैं कि मंगल पांडे ने कहीं ना कहीं विद्रोह का एक आग ज्वाला हमारे अंदर भर दी थी