प्रश्न है मैं बहुत कुछ करता हूं एक अच्छा इंसान बनने के लिए फिर भी ना कामयाब हो जाता हूं ऐसा क्यों अपना कामयाब इसलिए हो जाते हो क्योंकि आप एक अच्छे इंसान पहले से ही हो अब किस आधार पर अच्छा होना चाहते हो अपने आधार पर परिवार के आधार पर लोगों के आधार पर यह समाज के आधार पर क्या आपको पता है कि अच्छा इंसान होना क्या है अच्छा और बुरा सही और गलत की परिभाषा प्रत्येक मनुष्य में अलग-अलग होती है इसलिए आप अच्छे इंसान कभी नहीं बन पाएंगे आप अपने जीवन में थोड़ा ठहराव लाइए अपने आप से मत भाग्य आप जैसे हैं वैसे ही रहिए उसे महसूस कीजिए उसके साथ बने रही है अपने आप को परिभाषित मत कीजिए अपने होने को जिए अपने बुरे होने को जिए किसी क्षण आप उस आनंद को प्राप्त कर लेंगे जिस में रहकर आपसे कभी किसी का बुरा नहीं होगा आप अच्छा और बुरा सही और गलत की परिभाषा के ऊपर उड़ जाएंगे तब आप अच्छे इंसान होंगे यह बिना जाने कि आप एक अच्छे इंसान हैं
Prashn hai main bahut kuchh karata hoon ek achchha insaan banane ke lie phir bhee na kaamayaab ho jaata hoon aisa kyon apana kaamayaab isalie ho jaate ho kyonki aap ek achchhe insaan pahale se hee ho ab kis aadhaar par achchha hona chaahate ho apane aadhaar par parivaar ke aadhaar par logon ke aadhaar par yah samaaj ke aadhaar par kya aapako pata hai ki achchha insaan hona kya hai achchha aur bura sahee aur galat kee paribhaasha pratyek manushy mein alag-alag hotee hai isalie aap achchhe insaan kabhee nahin ban paenge aap apane jeevan mein thoda thaharaav laie apane aap se mat bhaagy aap jaise hain vaise hee rahie use mahasoos keejie usake saath bane rahee hai apane aap ko paribhaashit mat keejie apane hone ko jie apane bure hone ko jie kisee kshan aap us aanand ko praapt kar lenge jis mein rahakar aapase kabhee kisee ka bura nahin hoga aap achchha aur bura sahee aur galat kee paribhaasha ke oopar ud jaenge tab aap achchhe insaan honge yah bina jaane ki aap ek achchhe insaan hain
प्रश्न है भगवान श्री कृष्ण के दर्शन करने के बाद भी दुर्योधन ने अधर्म नहीं छोड़ा क्या कारण है क्योंकि हर व्यक्ति स्वयं से बंधा है अपने मन से बंधा है हर व्यक्ति को लगता है कि वह धर्म के मार्ग पर है वह जो कर रहा है सही कर रहा है अतः जिससे लगता है कि वह सही है तो वह दूसरों की बात क्यों मानेगा वह वही करेगा जो उसे सही लगता है लाखों-करोड़ों में कोई एक व्यक्ति दर्शन मात्र से धार्मिक हो जाता है अपना अधर्म छोड़ता है अब अर्जुन की ही बात करें तो वह स्वयं श्रीकृष्ण की बात मानने के लिए तैयार नहीं था जबकि कृष्ण भगवान थे उसके सखा थे उसके पक्ष में खड़े थे भगवान के सामने खड़े होकर भी भगवान से कैसे-कैसे तर्क करता है ज्ञानियों की तरह बातें करता है अर्जुन कहता है अपने ही सगे संबंधियों को मारकर राजपाट पालने से क्या लाभ है इससे अच्छा है कि मैं जंगल चला जाऊं सन्यासी हो जाऊं बड़ा ही सटीक तर्क है परंतु कृष्ण के लिए और धार्मिक है ऐसे ही तर्कों से पूरी गीता भरी है कृष्ण ने अर्जुन जैसे चीज और सिखा को भी धर्म के मार्ग पर लाने के लिए पूरी गीता कहीं और ऐसे समय पर जब सभी के प्राण दांव पर लगे थे अब आप समझे दर्शन मात्र से कोई अपना अधर्म नहीं छोड़ता है